Tuesday, March 10, 2015

लफ़्ज़ों के दम से

तारों ने सीखा टिमटिमाना तबसे
आसमां ने चुराई मेरी ग़ज़ल जबसे
चाँद को सूरज की अब ज़रुरत कहां
की रौशन है वो मेरे लफ़्ज़ों के दम से 

Thursday, March 05, 2015

इस बार की होली - is baar ki holi



तेरे साथ गुज़री
पिछली होली के रंग
बहोत पक्के थे

तेरी हर याद
पिचकारी बनके
रोज़ मुझे
रंग जाती है

हर सोच का गुलाल
तेरी घनेरी ज़ुल्फ़ों की तरह
मुझपर रोज़
बिखर जाता है

आज पूनम के चांद में भी
सफेदी कम
और तेरे रंगों की लाली
ज़्यादा है

तेरी यादों के रंग
बहोत पक्के हैं
धोने से ये
मिटने वाले नहीं

इस होली में
बिना रंगे ही
मैं रंगा हूँ

बिन खेले ही
चंद दाग़ हैं
जिनसे
तेरी खुश्बू आती है 

Monday, March 02, 2015

कुछ रिश्तों की पहचान - kuch rishton ki pehchan


कुछ रिश्तों की पहचान फासलों से ही होती है 
क्या हो गर सूरज और पृथ्वी के फासले मिट जाएं