Saturday, July 30, 2011

वो क्या है


चांदी की चादर ओढ़े नाचती हैं किरनें नदी पर
ख़ुशी की धुप में गुनगुनाती हैं यादें ज़मीन पर
गम की छाँव में झिलमिलाती है चांदनी रात
ज़िन्दगी की हर सोच पर आज करनी है कुछ बात

सोच के ताबूत में आज कैद है हर आवाज़
बांध की दीवारों में बंद है हर झील का साज़
काँटों के सेज पर बिची है हर फूल की सुहास
नियमों की मोहताज है आज हमारी हर सांस

प्रतिबन्ध का प्रतिबिम्ब है आज हर ज़िन्दगी
मुझे आज़ाद करो, ये कहती है हर बंदगी
इंसान ने इंसान को जकड़े रखा है क्यों?
खुदा की ज़मीन पर ये बेड़ियाँ है क्यों?

आज़ाद होना है, पर आज़ाद करना नहीं
जाना यहाँ से है, पर रहना फिरभी है यहीं
वो क्या है जो मैं समझ नहीं पाता हूँ
मेरी नासमझी है, या लोगों की अंधी आरज़ू

क्यों दुनिया की स्पर्धा में बिचड रहा हूँ मैं?
क्यों हर दुनियादारी से पिछड़ रहा हूँ मैं?
वो क्या है जो सदियों से ढूंढ रहा हूँ मैं?
वो क्या है जो सदियों से ढूंढ रहा हूँ मैं?

6 comments:

Mihir Vaidya said...

nice one buddy.. didnt know you had as much depth, thought and articulation in hindi as much as u did in english.. Cheers

Anil Singhal said...

wow.. u r good in he Hindi version too.. I find a couple of spelling issues , dont know if it had to do with transliteration :-)

Sandy said...

शानदार... ! बहुत बढ़िया लिखा है! हिंदी में भी पकड़ मजबूत दिख रही है!

Sharad Raval said...

Yes Kamlesh, it was a good efforts in Hindi as you said it was first time effort, I belive it is always good to express ourselves, what ever the language we use. One of the deffination of creation I know by one artist who said: 'all creative people has expressed their outer or inner world to project themselves, using their mediam they use, poetry, story, novels, painting or sculpture.' thanks for sharing...

Sumit said...

Nice start Kammo.

Naresh said...

Godly good