चांदी की चादर ओढ़े नाचती हैं किरनें नदी पर
ख़ुशी की धुप में गुनगुनाती हैं यादें ज़मीन पर
गम की छाँव में झिलमिलाती है चांदनी रात
ज़िन्दगी की हर सोच पर आज करनी है कुछ बात
सोच के ताबूत में आज कैद है हर आवाज़
बांध की दीवारों में बंद है हर झील का साज़
काँटों के सेज पर बिची है हर फूल की सुहास
नियमों की मोहताज है आज हमारी हर सांस
प्रतिबन्ध का प्रतिबिम्ब है आज हर ज़िन्दगी
मुझे आज़ाद करो, ये कहती है हर बंदगी
इंसान ने इंसान को जकड़े रखा है क्यों?
खुदा की ज़मीन पर ये बेड़ियाँ है क्यों?
आज़ाद होना है, पर आज़ाद करना नहीं
जाना यहाँ से है, पर रहना फिरभी है यहीं
वो क्या है जो मैं समझ नहीं पाता हूँ
मेरी नासमझी है, या लोगों की अंधी आरज़ू
क्यों दुनिया की स्पर्धा में बिचड रहा हूँ मैं?
क्यों हर दुनियादारी से पिछड़ रहा हूँ मैं?
वो क्या है जो सदियों से ढूंढ रहा हूँ मैं?
वो क्या है जो सदियों से ढूंढ रहा हूँ मैं?
6 comments:
nice one buddy.. didnt know you had as much depth, thought and articulation in hindi as much as u did in english.. Cheers
wow.. u r good in he Hindi version too.. I find a couple of spelling issues , dont know if it had to do with transliteration :-)
शानदार... ! बहुत बढ़िया लिखा है! हिंदी में भी पकड़ मजबूत दिख रही है!
Yes Kamlesh, it was a good efforts in Hindi as you said it was first time effort, I belive it is always good to express ourselves, what ever the language we use. One of the deffination of creation I know by one artist who said: 'all creative people has expressed their outer or inner world to project themselves, using their mediam they use, poetry, story, novels, painting or sculpture.' thanks for sharing...
Nice start Kammo.
Godly good
Post a Comment