तन्हाई मेरा पेहला प्यार भी है
और मेरा पेहला डर भी.
तुझसे जुदाई मेरी पेहली तमन्ना भी है
और आखरी आरज़ू भी.
तेरे बिना ही सबकुछ हूँ मैं
पर तेरे बिना कुछ भी नहीं.
किस सच को चुनना है मुझे
इस बात से बेख़बर भी नहीं.
तू मेरी मंज़िल नहीं
ये पता है मुझे,
फिर क्यों बार बार
तू ऐसे सताए मुझे?
मेरी मंज़िल इसी पल में है
पर मुकाम है मीलों दूर भी.
इस पल में और सब कुछ है
काश होती थोड़ी ज़िन्दगी भी.
जीना था मुझे खुलके
जब तूने जकड़े रखा था,
अब जब कोई पकड़ नहीं
तो क्यों जी नहीं पा रहा?
ऐ खुदा मुझे ये बता
क्यों बनाया मुझे तूने ऐसा?
जो है उसे छोड़कर क्यों
जो नहीं उसके पीछे मैं प्यासा?
2 comments:
Brilliant kamo..... And what a brilliant last few lines too....
Nice one Kamlesh, comes from deep emotion – can sense that
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