चाँद तो है आसमां में
मगर चांदनी नहीं,
सूरज तो है गगन में
पर रौशनी नहीं,
फूल तो है बाग़ में
पर खुशबू नहीं,
हवा तो है हर तरफ
पर सांस नहीं,
दरिया भी है करीब में
पर प्यास नहीं,
बारिश तो हो रही है
पर हम भीगे नहीं,
प्यार तो है आस पास
पर उसका एहसास नहीं,
जी तो रहे हैं हम
पर ज़िन्दगी नहीं।
कुछ तो बात है
जो हम समझ पाए नहीं,
पास होने पर भी
हम खुदको पाए नहीं।
हर तरफ ये बोझ क्यों है?
हर हाथ में ज़ंजीर क्यों है?
हर आँख में नमी क्यों है?
हर दिल में कमी क्यों है?
मगर चांदनी नहीं,
सूरज तो है गगन में
पर रौशनी नहीं,
फूल तो है बाग़ में
पर खुशबू नहीं,
हवा तो है हर तरफ
पर सांस नहीं,
दरिया भी है करीब में
पर प्यास नहीं,
बारिश तो हो रही है
पर हम भीगे नहीं,
प्यार तो है आस पास
पर उसका एहसास नहीं,
जी तो रहे हैं हम
पर ज़िन्दगी नहीं।
कुछ तो बात है
जो हम समझ पाए नहीं,
पास होने पर भी
हम खुदको पाए नहीं।
हर तरफ ये बोझ क्यों है?
हर हाथ में ज़ंजीर क्यों है?
हर आँख में नमी क्यों है?
हर दिल में कमी क्यों है?
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