Tuesday, October 15, 2013

खुदा से गुफ्तगू

अब शहर की चकाचौन्द रास नहीं आती
की आसमान में उसने तारे बिछाए हैं

अब उसके नाम की माला हाथों से नहीं होती
की साँसों की माला में सिमरूं मैं उसका नाम

अब इंसान की जुबां समझ नहीं आती
की हम तो खुदा से गुफ्तगू करते हैं 

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