Monday, October 28, 2013

एक कविता आज होनेको है

एक कविता आज होनेको थी
फिर वो कहीं अटक गई
पता नहीं कैसे थी आई
और कैसे यूहीं थम गई

शायद किसी फूल की खुशबू में खो गई
या फिर हवा के झोके में उड़ गई
शायद किसी बच्चे की हसी में घुल गई
या फिर बारिश की बूँद में भीग गई

शायद किसी जौहरी ने उसे तराश लिया
या कोई सुंदरी ने उसे हार समझ पहन लिया
शायद किसी संगीत के सुरों ने उसे पिरो लिया
या कोई चित्रकार ने उसे रंगों में डुबो दिया

मैंने ढूँढा उसे किरणों की धुप में
फिर टटोला उसे रात की चांदनी में
मैंने छाना उसे पेड़ की छाओं में
और खोजा उसे पंछियों के गान में

शायद छुपी थी वो अमीरी के महल में
या सिसकियाँ ले रही थी गरीबी की आह में
शायद झूमती थी वो सच्चाई के नाच में
या मरती थी वो फरेब की धीमी आंच में

मैं ढूंढता रहा उसे
जो हमेशा मुझे समेटे थी
मैं खोजता रहा उसे
जो मैंने कभी खोया ही नहीं

मेरी सोच की हर संधी में थी
और सांस की हर लय में है
एक कविता आज होनेको थी
एक कविता आज होनेको है 

5 comments:

Anonymous said...

God bless you Kamlesh! May you keep finding peace and beauty in ever pleasure and every pain...you are gods beloved child and god loves you...

Kamlesh Acharya said...

Thank you Anonymous for your wonderful blessings :)

Sumant Batra said...

Beautiful Kamlesh

Sandeep Nema said...

very nice!

Rajani Cherry said...

Superbbb